वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

 हज़रत ख़्वाजा जहां अब्दुल ख़ालिक़ ग़जदवानी

 

रहमतुह अल्लाह अलैहि

आज से सैंकड़ों बरस पहले बुख़ारा के एक बड़े शहर ग़जदवान की काबुल-ए-एहतिराम शख़्सियत हज़रत अबदुलजलील या अबदालजमील के घराने को एक ऐसे ही मर्द कामिल ने बशारत दी कि तुम्हारे घर एक चिराग़ रोशन होने वाला है जो एक आलम को पुरनूर बनाएगा। इस का नाम अबदुलख़ालिक़ रखना। ये बशारत देने वाले हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम थे-

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इस बशारत के ठीक तीन माह बाद हज़रत ख़्वाजा अबदुलजलील वासिल बहक हुए और अपने चहेतों को सोगवार छोड़ गए। ठीक छः माह बाद हज़रत ख़्वाजा अबदुलजलील रहमतुह अल्लाह अलैहि इमाम के घर एक हुसैन-ओ-जमील बच्चा तव्वुलुद हुआ, जिस का नाम मुबारक मर्द-ए-कामिल की बशारत की वजह से अबदुलख़ालिक़ रखा।

होनहार और ज़हीन शागिर्द ने दिन रात एक करके ज़ाहिरी तालीम से फ़राग़त हासिल करली। लेकिन दिल की प्यास थी कि बढ़ती ही जा रही थी। आप मर्द-ए-कामिल की तलाश में फिरते रहे। एक रोज़ आप बाद नमाज़ इशा महवियत के आलम में बैठे थे कि आप को किसी ने आवाज़ दी। आप चूंके, इधर उधर देखा और फिर अपना वहमा ख़्याल करके दुबारा ज़िक्र में मशग़ूल होगए। थोड़ी देर के बाद फिर आवाज़ आई तो आप ने सर उठाया तो देखा कि एक निहायत हुसैन जमील सूरत बुज़ुर्ग तशरीफ़ फ़र्मा हैं। हज़रत अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि बुज़ुर्ग से उठ कर मिले। बुज़ुर्ग गोया हुए कि अबदुलख़ालिक़ तुम्हें मर्द-ए-कामिल की तलाश थी और रब ताला ने मुझे ख़ुद ही तुम्हारे पास भेज दिया है। हज़रत अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अर्ज़ किया कि जनाब में तो आप को पहचाना ही नहीं, बुज़ुर्ग ने निहायत मुहब्बत आमेज़ लहजे में फ़रमाया कि बेटा में वही हूँ जिस ने तुम्हारी पैदाइश की ख़ुशख़बरी सुनाई थी और मेरा काम लोगों को रास्ता दिखाना है। हज़रत अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि निहायत दर्जा ख़ुश हुए और बुज़ुर्ग की ख़िदमत में अर्ज़ क्या जनाब अभी आप मेरे साथ मेरे घर चलेंगे। बुज़ुर्ग ने चंद शराइत पेश कीं।1, में तुम्हारे साथ कुछ खाऊं पीओं गा नहीं 2, में तुम्हारे साथ इक़ामत इख़तियार नहीं करूंगा 3, मेरा ताल्लुक़ सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी ज़ात तक महिदूद रहेगा, में तुम्हारे किसी अज़ीज़ दोस्त रिश्तेदार से नहीं मिलूँगा और 4, चौथी शर्त ये कि तुम मेरी किसी भी बात पर मुझ से उस की वजह नहीं पूछोगे और मेरा तआरुफ़ नहीं चाहोगे। हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि ने वाअदा फ़र्मा लिया कि उन्हें ये तमाम शराइत मंज़ूर हैं और में उन पर कमाहक़ा अमल करने की कोशिश करूंगा। इन शराइत के साथ ही उस मर्द-ए-कामिल ने हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि से फ़रमाया अब में तुम्हें अपनी फ़र्ज़ंदी में लेता हूँ और तुम्हें एक सबक़ बताता हूँ, इस पर मुदावमत करो ताकि तुम पुर इसरार-ओ-रमूज़ मुनकशिफ़ हूँ। फिर उस मर्द-ए-कामिल ने हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि को वक़ूफ़ अददी की तालीम दी और फ़रमाया कि दिल की गहिराईयों से लिऐ अल्लाह ए-ए-लिऐ अलल्लाहु मुहम्मदु र्रसूओलु उल़्ला-ए- कहो। हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि ने ऐसा ही किया और इस वरद में मशग़ूल होगए और बहुत जल्द उन्हें इस बात का एहसास होगया कि इलम-ओ-इसरार के बोझ से उन का वज़न बढ़ता जा रहा है। हज़रत अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि की उम्र 22 बरस की होचुकी थी और हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम की तर्बीयत में एक अर्सा हो चला था कि यकायक ग़लग़ला बुलंद हुआ कि बुख़ारा में मशहूर-ए-ज़माना बुज़ुर्ग ख़्वाजा-ए-ख़वाजगान ख़्वाजा अब्बू यूसुफ़ हमदानी रहमतुह अल्लाह अलैहि तशरीफ़ लाए हुए हैं। हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम ने हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि से फ़रमाया कि अब मेरा काम ख़त्म हुआ, जिन का हमें इंतिज़ार था वो तशरीफ़ लाए हैं, अब वो आप की तर्बीयत करेंगे।हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि अपने पैर सबक़ के साथ हज़रत ख़्वाजा अब्बू यूसुफ़ हमदानी रहमतुह अल्लाह अलैहि की बारगाह अक़्दस में हाज़िर हुए। ये देख कर हज़रत अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि निहायत मुतअज्जिब हुए कि हज़रत ख़्वाजा अब्बू यूसुफ़ हमदानी रहमतुह अल्लाह अलैहि पहले ही से मुंतज़िर हैं और बढ़ कर हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम से मुसाफ़ा फ़रमाया।

हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम ने फ़रमाया कि जनाब उस लड़के की अब आप तर्बीयत फ़रमाएंगे, उसे अपनी फ़र्ज़ंदी में क़बूल फ़रमाएं। हज़रत ख़्वाजा अब्बू यूसुफ़ हमदानी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया कि जनाब में बुख़ारा उन के लिए ही आया हूँ। इस के बाद हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम ने फ़रमाया कि बेटा अब ये तुम्हारे मुर्शिद हैं ये फ़रमाकर वो तशरीफ़ ले गए। आख़िर हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि अपने मुर्शिद मुरब्बी से अर्ज़ गुज़ार हुए कि क्या आप मेरा एक मसला हल फ़रमाएंगे। हज़रत अब्बू यूसुफ़ हमदानी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने वाअदा फ़र्मा लिया कि जो पूछो हम इंशाअल्लाह बताएंगे। इस पर हज़रत अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अर्ज़ क्या जनाब ये बुज़ुर्ग जो मुझे आप की ख़िदमत में लेकर आए थे ये कौन हैं? हज़रत ख़्वाजा अब्बू यूसुफ़ हमदानी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया कि क्या तुम अपना सवाल वापिस नहीं ले सकते। आप ने अर्ज़ किया कि जनाब सवाल वापिस लेने के लिए नहीं किया गया। इस पर हज़रत अब्बू यूसुफ़ अली हमदानी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया कि वो मेरे मुर्शिद हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम हैं। हज़रत अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि ने ये सुना तो हैरत के साथ फ़रमाया कि ये हज़रत ख़िज़र हैं, अफ़सोस कि इतना अर्सा हज़रत के साथ रहा लेकिन पहचान ना सका। आप ने फ़रमाया कि अब अफ़सोस करने की ज़रूरत नहीं बल्कि अब तुम मेरी बातों पर अमल करो, ख़ुदा ने चाहा तो दूर दूर तक तुम्हारा कोई जवाब ना होगा।

हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि हज़रत ख़्वाजा अब्बू यूसुफ़ हमदानी रहमतुह अल्लाह अलैहि के तशरीफ़ ले जाने के बाद वहीं बुख़ारा में रियाज़त-ओ-मुजाहिदा में मशग़ूल होगए। आप अपनी रविष-ओ-हालात को अग़यार की नज़रों से पोशीदा रखते थे। बहुत से लोगों ने आप के दस्त हक़परसत पर बैअत की और वही जगह ख़ानक़ाह और आस्ताना बिन गया।

आप तहरीर फ़रमाते हैं कि ए फ़र्ज़ंद तक़वा को अपनी ख़सलत बनाओ और वताइफ़-ओ-इबादात पर मज़बूती से जमे रहो और अपने हालात का मुहासिबा करो, ख़ुदा और इस के रसूल बरहक़ अलैहि अलसलवाऩ वस्सलाम के और वालदैन के हुक़ूक़ अदा करो, नमाज़ बाजमाअत अदा करना, हदीस-ओ-तफ़सीर और फ़िक़्ह की तालीम ज़रूर हासिल करना, जाहिल सूफीयों से परहेज़ करना क्योंकि वो देन के चोर और मुस्लमानों के राहज़न हैं, अपने अहवाल हमेशा दूसरों से छुपाए रखना, तालिब रियासत ना बनना, जो शख़्स रियासत का तालिब हुआ उस को तरीक़त का सालिक नहीं कहा जा सकता। बादशाहों से मेल जोल ना रखना। अपने नाम कोई क़ुबाला ना लिखवाना। ख़ानक़ाहें ना बनवाना और ना ही अपने आप को शेख़ कहलवाना। हमेशा रोज़ादार रहना, क्योंकि रोज़ा नफ़स को तोड़ देता है और फ़ुक़्र में पाकीज़ा और परहेज़गार रहना। राह-ए-ख़ुदा में तक़वा, हुलुम और फ़ुक़्र से साबित क़दम रहना, जान माल और तन से फ़िक़रा-ए-की ख़िदमत करना और उन का दिल राज़ी रखना और उन की पैरवी करना और उन के रास्ता को याद रखना और इन में से किसी का इनकार मत करना सिवाए इन चीज़ों के जो मुख़ालिफ़ शिरा हूँ। और मुतवक्किल अली अल्लाह रहना क्योंकि जो शख़्स अल्लाह ताला पर भरोसा करता है अल्लाह ताला इस के लिए काफ़ी होजाता है। जो कुछ अल्लाह ताला ने तुम को दिया है उस को तुम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा पर ख़र्च करना। अपने नफ़स की हिफ़ाज़त करना और उसे इज़्ज़त मत देना। कम खाना, कम पीना और कम बोलना और जब तक नींद का ग़लबा ना हुआ करे मत सोना और जल्द उठना। मजालिस समाव में ज़्यादा मत बैठना क्योंकि समाव की ज़्यादती नफ़ाक़ पैदा करती है, समाव की कसरत दिल को मारुति है। मगर समाव का इनकार भी ना करना क्योंकि बहुत से बुज़ुर्गों ने उस को सुना है। समाव सिर्फ़ इस के लिए जायज़ है जिस का दिल ज़िंदा और बदन मुर्दा (यानी अपनी ख़ाहिश कोई ना हो) और जिस में ये दो हालतें ना हूँ इस के लिए ज़माना रोज़ा में मशग़ूल होना बेहतर है। मर्दों और औरतों से सोहबत ना रखना। दुनिया की तलब में मुनहमिक होने से बचना, किसी से अपने आप को बरतर ना जानो और ना ही किसी से अपने आप को कमतर ख़्याल करो। बहुत ज़्यादा रोओ, कम हंसो, क़हक़हों से यकसर परहेज़ करो। तुम्हारा बदन बीमार और आँख रोती रहे, तुम्हारा अमल ख़ालिस, तुम्हारी दुआ में मुजाहिदा हो, मस्जिद तुम्हारा घर और किताबें तुम्हारा माल हूँ। दरवेश तुम्हारे रफ़ीक़ और ज़ुहद-ओ-तक़वा तुम्हारी आराइश हो और तुम्हारा मूनिस अल्लाह ताला हो। जिस शख़्स में ये पाँच बातें हूँ इसी के साथ दोस्ती रखना।

1। वो फ़क़ीर को तवंगरी या अमीरी पर तर्जीह दे।

2। जो दीन को हमेशा दुनिया पर तर्जीह दे।

3। जो उलूम ज़ाहिर-ओ-बातिन का आलम हो।

4। राह-ए-ख़ुदा की ज़िल्लत को इज़्ज़त पर फ़ौक़ियत दे।

5। जो मौत के लिए हरवक़त तैय्यार हो।

ए फ़र्ज़ंद इन नसीहतों को ख़ूब याद करलो और अमल करो। जिस तरह मैंने अपने पैर-ओ-मुर्शिद से याद कीं और अमल किया और तुम याद करोगे और अमल करोगे तो अल्लाह ताला तुम्हारी दुनिया-ओ-आख़िरत में निगहबानी फ़रमाएगा। जिन बातों का मैंने ज़िक्र किया है अगर ये किसी सालिक में पैदा होजाएं तो उस की बुजु़र्गी मुस्लिम होजाए और जो शख़्स उस की पैरवी करेगा अपने मक़सूद-ओ-मतलूब तक पहुंच जाएगा।

एक मर्तबा हज़रत ख़्वाजा-ए-ख़वाजगान निहायत अलील होगए। लोगों को यक़ीन था कि अब ये माहताब कामिल रुपोश हुआ चाहता है। आप ने लोगों की जज़्बानी हालत को मुलाहिज़ा फ़रमाया कि लोग बार बार दुआ की ख़ाहिश कररहे हैं तो आप ने इरशाद फ़रमाया दोस्तो तुम को मुबारक हो कि हज़रत हक़तआला सुब्हाना ने मुझे ये ख़ुशख़बरी दी है, इस तरीक़ा को जो लोग इख़तियार करेंगे और आख़िर तक इस पर क़ायम रहेंगे में इन सब को बख़श दूंगा और सब पर अपनी रहमत नाज़िल फ़र्माओं गा। पस बहुत ज़्यादा कोशिश करो। ये सुनना था कि लोगों पर जोश-ओ-जज़बा और गिरिया की कैफ़ीयत तारी होगई। थोड़ी देर के बाद आवाज़ आई कि

याआय्यथुअ अलन्नफ़सु अलमुतमइन्नऩु अरजिअई ए-ए-लिऐ रब-ए-रअज़ीन म्मरज़ी्यऩ

ए नफ़स-ए-मुतमइन्ना अपने रब की तरफ़ आ कि तो इस से राज़ और वो तुझ से राज़ी हो। ये सन कर अहबाब-ओ-अस्हाब ने देखा कि आप वासिल बिल्लाह होचुके हैं। अना लल्ला-ओ-अना अलैह राजावन। आप की तारीख़ विसाल पर मुख़्तलिफ़ आरा हैं। बाअज़ ने 616, बाअज़ ने 617ह और बाअज़ रवायात में 615ह है। तज़करऩ अलमशाइख़ नक़्शबंदिया और सोफ़याए नक्शबंद ने आप का विसाल 12 रबी उलअव्वल 675ह लिखा है। इस तरह ये आफ़ताब वलाएत मंबा इलम-ओ-इर्फ़ान हज़रत ख़्वाजा अबदुलख़ालिक़ ग़जदवानी रहमतुह अल्लाह अलैहि अपने ख़ालिक़ हक़ीक़ी से जा मिले।

आप का मज़ार पर अनवार ग़जदवान बुख़ारा (मौजूदा उज़बेकिस्तान) में ही वाक़्य मुरक़्क़ा ख़ास-ओ-आम है।